क्यों डूबा दिया था उस कश्ती को मंझधार में?
क्यों क़त्ल कर दिए गए वो किरदार?
तैरना भी तो नहीं आता था उन्हें...क्यों नहीं बचाया उनको?
क्यों छोड़ आए थे उनकी लाश समंदर में?
माझी! कई सवाल हैं मेरे पास..
जिन्हें नंगे घाव की तरह जलता हुआ छोड़ आए थे तुम उस रात
बहुत सोचा था...कभी मिलोगे तो पूछ लूँगा तुमसे
पर घाव पे मरहम लग चुका है वक़्त का
अब इन प्रश्नचिन्हो की आदत हो गयी है
नहीं दरकार है अब इन सवालों के जवाब
उनसे अब दर सा लगता है
घाव खुल ना जाये फिर से
दर्द तो मुझे ही होगाऔर भुगतना भी तो मुझे ही है