Wednesday, August 31, 2011

ऐक जवाब


अकसर जब कोई सवाल सताता है
मैं समरदार की ओर चल पड़ता हूँ
शायद सोचकर मेरे सवालों के जवाब देंगी ये लहरें
या कोई तोह रह दिखा देंगी ये लहरें
असल में कभी गौर ही नहीं किया

पर पिछले हफ्ते यूँ ही निकल पड़ा इन लहरों की ओर
सवाल उलझे हुए थे कुछ
लहरों के शोर में ऐक जवाब खोज रहा था
कोशिश तो बहुत कर रही थीं वह लहरें कुछ कहने को
पर मैं ही उनकी डोर नहीं पकड़ पा रहा था
चल तो रहा था पर बस पैरों के निशान दिख रहे थे
जवाब नहीं मिल रहा था

बहुत देर रहा बहुत दूर चला मैं
अब पांव भी कह रहे थे की लौट पड़ो तुम
पीछे मुदा तो देखा
लहरों ने सारे निशान मिटा दिए थे
और कोरा रेत साफ़ चमक रहा था
शायद मुझे जवाब मिल चूका था

लोग अक्सर आते हैं यहाँ अपनी उलझनें लेकर
पर देखो, समंदर की ऐक लहर काफी होती है
उनके पैरों के निशाँ मिटा देने के लिए 

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