Monday, January 14, 2013

जलता रह तू





एक और साल बीत जाये  
पर कम न हो पागलपन कोई   

चल पढ़ नए रास्तो पे तू  
मंजिल की खबर न हो कोई   

न फ़िक्र हो कल की  
आने वाली हो या जो बीत गयी   

जी तू आज इसी पल में  
कदम बढ़ा तू अपने सपनो का सहारा लिए   

पंख फैला और लाँघ जा इन रिवाजों को  
कुर्सी की दीवारों को और कागज़ की इन बेड़ियों को   

न बुझने दे इस सुलगते अंगारे को  
बावरेपन से लथ पथ इस झिलमिल सितारे को   

आज़ादी की मशाल है तू  
जलता रह तू  
चलता रह तू 

3 comments:

  1. Beautiful!!!
    And why not.. Its written by You!!!!
    And dedicted to Me!!! ;)

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  2. Beautifully written Mr Abheek!

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  3. @Mehek: Thanks a ton. And these are not merely words...
    आज़ादी की मशाल है तू
    जलता रह तू
    चलता रह तू

    @Anon: Thanks Anon. PS. I Know who you are! :D

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