प्यास लगी थी
तो खुली आखों से कुछ सपने देखने चला गया
रोज़ ही की तरह पृथ्वी की ऒर
भैया, एक गिलास सुलेमानी देना
क्या? नहीं है?
चलो, फिर एक खाली गिलास ही दे दो
और जा बैठा इन चमचमाती केतलियों के नीचे
केत्लियान, जिनमे से सपने बह रहे थे
भैया, एक cutting सपना दे दो
कई रातों से सोया नहीं हूँ
No comments:
Post a Comment