Monday, June 27, 2011

लहू में नाहाई वह बूँदें


साल की पहली बारिश
बूँदें कल गिरी थीं सुर्ख ज़मीन पर
समा सी गयी थीं जैसे वह बूँदें ज़मीन में
सुकून मिला था धरती को कल
अरसों बाद प्यास जो बुझी थी

भीगा तो मैं भी था इस बरसात में
खेलीं थी मुझ पर भी वह बूँदें
आ गिरे थे सपनों पर, जो झुलस रहे थे अब तक
धुल सा गया था मैं
और घुल सा गया था खून इन बूंदों में

कभी लहू को पानी में समाते हुए देखा है तुमने?

Have you ever let the droplets play their music on your soul? 
Have you ever come out of the cozy shelter or your umbrella?
Have you ever let the drops pour life in your burning dreams? 
Felt the rain so closely that you can see your blood getting absorbed in the rain?