Tuesday, May 31, 2011

खुशियों से डर लगता है





तरसता हूँ मैं
उसे पाने को
छु सकूँ ऐक बार इन्हें
पास आयें तोह कस के जाकड़ लूँ बाहों में
इन खुशिओं को

तरसता हूँ मैं
जब देखता हूँ चारों ओर
तितलिओं सी उड़तीं रहतीं हैं ये
पास आयें तो मुट्ठियों में बंद कर लूँ
इन खुशिओं को

और ऐक दिन आ ही गयीं मेरे करीब
वह तितलियाँ
एक उडती हुई आ बैठी मेरी उँगलियों पर
फर फडाते हुए परों से जैसे कह रहीं हो
क्या हुआ? इतने खामोश क्यों हो?

और अगले हवा के झोको के साथ उड़ चलीं
मन में हजारों ख्याल छोड़े
हजारों अधूरे ख्वाब तोड़े
और कुछ अरमान लिए

और मैं बस देखता रहा उनकी उर
डरा सहमा सा

बड़ी नाज़ुक होती हैं ये खुशियाँ
इन कागज़ की तितलियों की तरह
टूट के कब बिखर जाएँ पल भर में

बड़ी कमज़ोर होती हैं ये खुशियाँ
एक पल रहती हैं साथ
और दुसरे पल दे जाते हैं दर्द
दे जाते हैं घाव ज़िन्दगी भर के

सच बताऊ?
आज कल खुशियों से दर सा लगता है बहुत
 
I have always yearned for happy moments. But most of the times, the feeling has been short lived.
Because the moments are like paper butterflies, break easily with the wind.
Leaving behind shards of broken thoughts, hopes and dreams.

Happiness is quite perilous.
खुशियों से डर लगता है |