कितना वक़्त लगता है खून को जमने में?
ज़ख्म भरने में?
कितनी देर लगती है सपनो को जल के राख़ होने में?
या फिर उमीदों को टूट के बिखरने में?
एक साल
खून बहा है
सूख के जम गया है से ये गाढ़ा लाल खून
ज़ख्म मिले और घाव भरे भी हैं
सपने, जिनको संदूक में भर के था
पिछले एक साल में टूटे कुछ बिखर गए
पिछले एक साल में एक जहान छूट गया
वो गली छूट गयी वोह माकन छूट गया
वो बूढ़ी सी सीढ़ियाँ छूटी वो platform छूट गया
कई पतंग उड़े थे पिछले संक्रान्ति
इस एक साल के धार ने सारे माँजे काट दिए
आज उलझ गए हैं, बांघ गए हैं मेरे ज़हन से
आज वो सारे पतंग अटके हुए हैं मेरी शाखों से
हवा बहती है तो फिर से उड़ने लगतीं हैं ये
मेरे सुर्ख़ शाखों को अब हरे पत्तों ज़रुरत नहीं |