मेरी ट्रेन बांद्रा पे आकर रुकी थी
स्टेशन पर मैंने फिर उन दोनों को देखा
रोज़ देखता हूँ
अगले प्लेटफ़ॉर्म पर चर्चगेट फास्ट का इंतज़ार करते हैं दोनों
किसी कॉलेज के छात्र हैं शायद.
सीढ़ी के पास वाले बेंच पर बैठकर
भीड़ से अनजान दोनों
एक दुसरे के बातों में उलझे रहते हैं
किस्से कहानियां हसना हँसाना
रोज़ देखता हूँ
मेरी ट्रेन बांद्रा पे आके रुकी थी
सिग्नल नहीं मिला था आज
स्टेशन पर मैंने फिर उन दोनों को देखा
रोज़ देखता हूँ
अगले प्लेटफ़ॉर्म पे बेंच पर बैठे थे दोनों
वोही भीड़ थी, जिससे दोनों अनजान थे
वही हंसी थी, वही किस्से
आज उन्हें कुछ देर तक मैं देखता रहा
वह साइन लेंगुएज का प्रयोग कर रहे थे
मेरी ट्रेन चल पड़ी
काफी देर तक सोचता रहा
खामोश रहकर भी वह ख़ुशी बाँट रहे हैं
और हम...
बात करते हैं तोह
लोग रोते हैं, लोग मरते हैं
Each day as my train halts at the Bandra station, I see two friends. Oblivious of the crowd, immersed in their own world. Laughing. Smiling. At times, Giggling.
Today my train had been at the station for a little too long. They were sitting there as usual. It was today that I saw them using sign language.
Made me think. Their disability in no way stopped them from sharing happiness.
And us with the 'gift'?
When we speak. People Cry. People Die.
People abuse people curse thats the most sad thing
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