Friday, January 18, 2013

अख़बार



ये अख़बार  आज का  नहीं है जो पढ़ के दे दिया रद्दी को 
न ही ये Calender है किसी साल का 

ये तो रोज़ एक कहानी सुनती है 
तवारीखों की, तारीखों की और सालों की 

समेट लिया है इसने समय को 
सीने में है कई राज़ छुपे 

पलट देना पन्ने को महीने के अंत में 
ले जाएगी ये तुमे कल में 
किसी और ही पल में 

शुक्रिया Gulzar व Mehek
 

Monday, January 14, 2013

जलता रह तू





एक और साल बीत जाये  
पर कम न हो पागलपन कोई   

चल पढ़ नए रास्तो पे तू  
मंजिल की खबर न हो कोई   

न फ़िक्र हो कल की  
आने वाली हो या जो बीत गयी   

जी तू आज इसी पल में  
कदम बढ़ा तू अपने सपनो का सहारा लिए   

पंख फैला और लाँघ जा इन रिवाजों को  
कुर्सी की दीवारों को और कागज़ की इन बेड़ियों को   

न बुझने दे इस सुलगते अंगारे को  
बावरेपन से लथ पथ इस झिलमिल सितारे को   

आज़ादी की मशाल है तू  
जलता रह तू  
चलता रह तू