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Friday, January 18, 2013

अख़बार



ये अख़बार  आज का  नहीं है जो पढ़ के दे दिया रद्दी को 
न ही ये Calender है किसी साल का 

ये तो रोज़ एक कहानी सुनती है 
तवारीखों की, तारीखों की और सालों की 

समेट लिया है इसने समय को 
सीने में है कई राज़ छुपे 

पलट देना पन्ने को महीने के अंत में 
ले जाएगी ये तुमे कल में 
किसी और ही पल में 

शुक्रिया Gulzar व Mehek